कलयुग की करतूत


कलयुग की करतूत


निषध देश में वीरसेन के पुत्र राजा नल बड़े गुणवान, सुंदर, सत्यवादी, और ब्राह्मण भक्त थे। विदर्भ राजकुमारी दमयन्ती राजा नल की चर्चा सुन कर उनको अपनी पति बनाना चाहती थी। दमयन्ती के पिता महाराज भीम ने स्वयंवर का आयोजन करके दमयन्ती के पिता महाराज भीम ने स्वयंवर का आयोजन करके दमयन्ती का विवाह करने का निश्चय किया।
दमयन्ती ने उपस्थित समूह में से राजा नल का वरण किया। जब देवराज इंद्रादि दमयन्ती को आशीर्वाद दे कर जाने लगे तो रास्ते में कलयुग और द्वापर मिल गये। उन्हे बड़ी तेजी से आता देखकर देवराज इंद्र ने पूछा- क्यों कलयुग कहां बड़ी शीघ्रता से जा रहे हो। कलयुग ने उनसे स्वयंवर की बात बताई। इंद्र ने उनसे हंसकर बताया कि विवाह तो हो चुका है। हम देवता ताकते रह गये। अब तो कलयुग आग बबूला होकर बोला। ओह देवताओं के रहते उसने मनुष्य का वरण किया। यह देवताओं का घोर अपमान है। मै उसे ऐसा दण्ड दूंगा जिससे वह राजा नल के साथ सुख पूर्वक नहीं रह सकेगी। देवताओं ने कलयुग को बहुत समझाया, पर वह नहीं माना।

राजा नल की चतुरता, धैर्य, ज्ञान, तपस्या, पवित्रता, दम और शम आदि लोकपालों के समान थे। उनपर कलियुग का कोई वश नहीं चलता था, पर संयोगवश बारह वर्ष बाद एक दिन राजा नल संध्या के समय लघुशंका करके बिना पैर धोए ही आचमन करके पूजा वंदना करने बैठ गए। यह अपवित्र अवस्था देखकर कलियुग उनके शरीर में प्रवेश कर गया। फिर क्या था कलियुग ने पहले राजा नल को जुएं में पराजित करवाया। 

दमयन्ती के साथ एक वस्त्र पहनवाकर जंगल में भिजवाया। फिर वहां भी द्वापर की सहायता से राजा नल का वस्त्र भी लेकर चला गया। राजा नल इस दुख को सहन न कर पाए और दमयन्ती को आधी साड़ी में छोड़कर चले गए। जब राजा नल भाग रहे थे उसी समय कर्कोटक नामक एक सर्प को बचा लिया। उसने राजा नल को डस करके उनका रूप बदल दिया और उसके विष से राजा नल के शरीर में स्थित कलियुग को कष्ट होने लगा। इधर जब दमयन्ती की नींद टूटी तो पति के वियाग में पागल होकर किसी प्रकार जाकर चेदिनरेश राजा सुबाहु के यहां रहने लगी। परिचय होने पर ज्ञात हुआ कि राज माता दमयंती की मौसी थी। उन्होंने दमयंती को उसके पिता के घर भिजवा दिया। 

माता पिता की आज्ञा से दमयंती ने राजा नल की खोज के लिए ब्राह्मणों को नियुक्त किया। थोड़े समय बाद दमयंती को राजा नल का पता चला। रात्रि में माता की सहायता से दमयंती ने बाहुक बने राजा नल को अपने महल में बुलवाया। दमयंती को देखकर राजा नल थोड़े- बहुत वार्तालाप के बाद उसके गले मिलकर रोने लगे। कलियुग का दोष बताकर उन्होंने दमयंती को संतोष दिलाया। तदनन्तर वे दमयन्ती के साथ सुख पूर्वक रहने लगे।

हे भगवान् मुझे बेटी देना बेटा नही


मधु एक बकरी थी, जाे की माँ बनने वाली थी। माँ बनने से पहले ही मधू ने भगवान् से दुआएं मांगने शुरू कर दी। कि "हे भगवान् मुझे बेटी देना बेटा नही"। पर किस्मत काे ये मन्जूर ना था, मधू ने एक बकरे काे जन्म दिया, उसे देखते ही मधू राेने लगी। साथ की बकरियां मधू के राेने की वजह जानती थी, पर क्या कहती। माँ चुप हाे गई आैर अपने बच्चे काे चाटने लगी। दिन बीत ते चले गए आैर माँ के दिल मे अपने बच्चे के लिए प्यार उमडता चला गया। धीरे- धीरे माँ अपने बेटे में सारी दुनियाँ काे भूल गई, आैर भूल गई भविष्य की उस सच्चाई काे जाे एक दिन सच हाेनी थी।

मधू राेज अपने बच्चे काे चाट कर दिन की शुरूआत करती, आैर उसकी रात बच्चे से चिपक कर साे कर ही हाेती। एक दिन बकरी के मालिक के घर बेटे जन्म लिया। घर में आते महमानाे आैर पड़ोसियों की भीड देख बकरी ने साथी बकरी से पूछा "बहन क्या हुआ आज बहुत भीड है इनके घर पर" ये सुन साथी बकरी ने कहा की "अरे हमारे मालिक के घर बेटा हुआ है, इसलिए चहल पहल है" बकरी मालिक के लिए बहुत खुश हुई आैर उसके बेटे को बहुत दुआए दी। फिर मधू अपने बच्चे से चुपक कर साे गई। मधू साे ही रही थी के तभी उसके पास एक आदमी आया, सारी बकरियां डर कर सिमट गई, मधू ने भी अपने बच्चे काे खुद से चिपका लिया। 

के तभी उस आदमी ने मधू के बेटे काे पकड लिया आैर ले जाने लगा। मधू बहुत चिल्लाई पर उसकी सुनी ना गई, बच्चे काे बकरियां जहाँ बंधी थी उसके सामने वाले कमरे में ले जाया गया। बच्चा बहुत चिल्ला रहा था, भुला रहा था अपनी माँ काे, मधू भी रस्सी काे खाेलने के लिए पूरे पूरे पाँव रगड दिए पर रस्सी ना खुली। थाेडी देर तक बच्चा चिल्लाया पर उसके बाद बच्चा चुप हाे गया, अब उसकी आवाज नही आ रही थी। मधू जान चुकी थी केे बच्चे के साथ क्या हुआ है, पर वह फिर भी अपने बच्चे के लिए अाँख बंद कर दुआए मांगती रही। पर अब देर हाे चुकी थी बेटे का सर धड से अलग कर दिया गया था।

बेटे का सर मा के सामने पडा था, आज भी बेटे की नजर माँ की तरफ थी, पर आज वह नजरे पथरा चुकी थी, बेटे का मुह आज भी खुला था, पर उसके मुह से आज माँ के लिए पुकार नही निकल रही थी, बेटे का मूह सामने पडा था माँ उसे आखरी बार चूम भी नही पा रही थी इस वजह से एक आँख से दस दस आँसू बह रहे थे। बेटे काे काट कर उसे पका खा लिया गया। आैर माँ देखती रह गई, साथ में बेठी हर बकरियाँ इस घटना से अवगत थी पर काेई कुछ कर भी क्या सकती थी।

दाे माह बीत चुके थे मधू बेटे के जाने के गम में पहले से आधी हाे चुकी थी, के तभी एक दिन मालिक अपने बेटे काे खिलाते हुए बकरियाें के सामने आया, ये देख एक बकरी बाेली "ये है वाे बच्चा जिसके हाेने पर तेरे बच्चे काे काटा गया" मधू आँखाें में आँसू भरे अपने बच्चे की याद में खाेई उस मालिक के बच्चे काे देखने लगी।

वह बकरी फिर बाेली "देख कितना खुश है, अपने बालक काे खिला कर, पर कभी ये नही साेचता की हमें भी हमारे बालक प्राण प्रिय हाेते है, मैं ताे कहू जैसे हम अपने बच्चाे के वियोग में तडप जीते है वैसे ही ये भी जिए, इसका पुत्र भी मरे" ये सुनते ही मधू उस बकरी पर चिल्लाई कहा "उस बेगुनाह बालक ने क्या बिगाडा है, जाे उसे मारने की कहती हाें, वाे ताे अभी धरा पर आया है, एेसा ना कहाे भगवान् उसे लम्बी उम्र दे, क्यू की एक बालक के मरने से जाे पीडा हाेती है मैं उससे अवगत हूँ, मैं नही चाहती जाे पीडा मुझे हाे रही है वाे किसी आैर काे हाे" ये सुन साथी बकरी बाेली कैसी है तू उसने तेरे बालक काे मारा आैर तू फिर भी उसी के बालक काे दुआ दे रही है।"

मधू हँसी आैर कहा "हाँ, क्याेकी मेरा दिल एक जानवर का है इंसान का नही। ये कहना मात्र ही उस बकरी के लिए जवाब हाे गया था कि मधू ने एेसा क्यू कहा। मधू ने फिर कहा "ना जाने किस जन्म के पापाे की वजह से आज इस याेनी में जन्म मिला, ना जाने किस के बालक काे छीना था जाे पुत्र वियोग मिला, अब किसी को बालक काे बद्दुआ दे उसे मारे फिर पाप पुण्य जन्म मृत्यु के चक्कर में नही फंसना, इसके कर्माे का दण्ड भगवान् देगा मैं नही।।।

बकरी की यह बात सुन साथी बकरी चुप हाे गई, क्याे की वह समझ चुकी थी के करनी की भरनी सबकी हाेती है मालिक की भी हाेगी।

( कई बार सच समझ नही आता की जानवर असल में है काैन)
Powered by Blogger.